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एपिसोड. 03: अरुणा राजे पाटिल: कहानी ता-उम्र जूझने की

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भारतीय सिनेमा के इतिहास को अगर भारतीय सिनेमा का पुरुष इतिहास कहा जाए तो कुछ ग़लत नहीं होगा. सिनेमा और ओरतें...ये ज़िक्र छेड़ा जाए तो आमतौर पर दिमाग़ म 
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सिने-माया की तीसरी कड़ी में अरुणा राजे पाटिल से हुई बातचीत सिर्फ़ एक निर्देशिका के फ़िल्मी करियर की कहानी नहीं है. ये कहानी है एक औरत के हौसले की, ठोकर खाकर फिर संभलने और ख़ुद को पा लेने की. अरुणा राजे ने अपने पति और निर्देशक विकास देसाई से तलाक़ के बाद ख़ुद को इतना अकेला पाया कि अपनी क़ाबिलियत पर भरोसा करने की हिम्मत भी जवाब देने लगी. लेकिन जिंदगी को कुछ और मंज़ूर था. उन्होने वापसी की अपनी फ़िल्म 'रिहाई' से और क़दम दर क़दम मानो दोबारा चलना सीखा.

In episode 3 of Cine-Maya, you will hear one of the most dramatic human story of love, loss and hope. Film director Aruna Raje Patil is the first woman technician to graduate from the Film and Television Institute of India, Pune. She joins host Swati to discuss how people reacted when she started working in the industry and the sexual politics of the film industry that makes it difficult for women to survive and work.

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