एक समय की बात है. दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश जा रहे थे. तभी रास्ते में उनको देवराज इंद्र मिले. वे ऐरावत पर सवार थे. उन्होंने दुर्वासा जी को प्रणाम किया, तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुए भगवान विष्णु का दिव्य पुष्प पारिजात इंद्र को दे दिया. इंद्र ने उस पुष्प को ऐरावत हाथी के सिर पर रख दिया. यह इंद्र के अहंकार का प्रमाण था.दिव्य पुष्प के प्रभाव से ऐरावत हाथी भी तेजस्वी हो गया और वह इंद्र को छोड़कर पुष्प को रौंदते हुए वन में चला गया. यह देखकर दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए. उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया कि तुम श्रीहीन हो जाओगे. दुवार्सा जी के श्राप के कारण माता लक्ष्मी तुरंत स्वर्ग छोड़कर चली गईं. इस वजह से सभी देवता धन-वैभव और शक्ति से हीन हो गए.