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सोशल मीडिया कंपनियों के लिए कैसे बन जाते हैं हम एक 'प्रोडक्ट'

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'द सोशल डिलेमा' डेढ़ घंटे का एक डोक्यू-ड्रामा है जिसे देखते-देखते आपको उन सवालों का भी जवाब मिल सकता है जो आपने कभी शायद पूछे भी न हों या फिर उनके बारे में कभी खयाल तक न आया हो. मसलन फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हम 'फ्री' में अकाउंट बना तो लेते हैं, लेकिन लेकिन हमें ये अंदाजा भी नहीं लगता कि हमारा 'सो-कॉल्ड फ्री अकाउंट' ही वो करेंसी है जिसकी इन कम्पनीज को जरूरत है. और इसी वजह से हम इनके लिए केवल यूजर नहीं बल्कि एक प्रोडक्ट हैं. इस फिल्म में फेसबुक और उबर में काम करने वाला एक पूर्व कर्मचारी भी कहता है कि सोशल मीडिया पर यूजर दरअसल कम्पनीज के लिए 'लैब रैट' होते हैं.

आखिर ये कैसा एक्सपेरिमेंट चल रहा है जिसका हमें पता नहीं चल पा रहा? आखिर किस तरह हम से ये बात छुपाई जाती है कि हम इस यूनिवर्सल साइबर एक्टिविटी में फ्यूल का काम कर रहे हैं? इसमें कोई एथिक्स हैं भी या नहीं? आखिर इससे कैसे बचें, और हमें कौन बचाएगा? इन में से कुछ सवालों के जवाब जो दिए जा सकते हैं वो आज बिग स्टोरी में समझेंगे ऑल्ट न्यूज़ फैक्ट चेकिंग वेबसाइट के सम्पादक, प्रतीक सिन्हा से. और साथ ही बात करेंगे जसप्रीत बिंद्रा से जो बड़ी कम्पनीज को डिजिटल और टेक्नोलॉजी के मामलों में सलाह देते हैं.

रिपोर्ट: फ़बेहा सय्यद
गेस्ट: प्रतीक सिन्हा, फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सम्पादक; जसप्रीत बिंद्रा, डिजिटल और टेक्नोलॉजी मामलों के विशेषज्ञ
इनपुट्स: सायरस जॉन
असिस्टेंट एडिटर: मुकेश बौड़ाई
म्यूजिक: बिग बैंग फज
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